May 12, 2019, 08:09 AM IST
मोदी का हर नया हमला बहुत सावधानी के साथ उचित समय पर और लक्षित होता है
इसे मोदी का चुनाव प्रचार कहना ही ठीक होगा, क्योंकि नारा भी तो फिर एक बार मोदी सरकार है न कि फिर एक बार भाजपा सरकार। मोदी विपक्ष के किसी भी हमले पर तुरंत ही जवाब देते हैं और कई बार तो वह विपक्ष पर वार करने के मौके की तलाश में ही रहते हैं। यद्यपि उनका हर नया हमला बहुत सावधानी के साथ उचित समय पर और लक्षित होता है। तो फिर उस समय निशाने पर क्या था, जब मोदी ने राहुल गांधी को अपने पिता राजीव गांधी के नाम पर प्रचार करने की चुनौती दे दी? उन्होंने राहुल पर यह कहकर ताना क्यों मारा कि, “आपके पिता को उनके दरबारी मिस्टर क्लीन कहते थे, लेकिन उनकी जिंदगी भ्रष्टाचारी नंबर एक पर खत्म हुई”?
यह एक जोखिम भरी चुनौती थी, क्योंकि यह सत्य नहीं है और झूठ का पर्दाफाश हो सकता है। राजीव को उनके दरबारी मिस्टर क्लीन नहीं कहते थे। मुझे जहां तक याद है राजीव को जनता और प्रेस दाेनों ने ही किसी भी प्रधानमंत्री की तुलना में एक लंबा और आसान समय दिया था। जब उनके जीवन का दुखद अंत हुआ तो उन पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं था। जब दिल्ली हाई कोर्ट को बोफोर्स मामले में राजीव के खिलाफ सबूत नहीं मिले तो तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी ने इसके खिलाफ अपील नहीं की थी।
विपक्ष और मीडिया के एक वर्ग ने मोदी के इस बयान के टेस्ट पर सवाल भी उठाया। लेकिन, मोदी ने न तो इसकी सत्यता और न ही टेस्ट की परवाह की, वे अलग-अलग शब्दों में राहुल को चुनौती देते रहे।
मोदी द्वारा चुनाव प्रचार में राजीव गांधी को बदनाम करने पर जो एक सफाई सामने आई वह यह है- यह राहुल के चौकीदार चोर है नारे की प्रतिक्रिया है। लेकिन, जैसा मैंने कहा कि मोदी के प्रचार में हर नया मुद्दा उचित समय पर और लक्षित होता है। बदला लेना तो आश्चर्यजनक तौर पर मोदी की गुस्से में की गई प्रतिक्रिया होगी। तो फिर मोदी को ऐसा लगता है कि रफाल पर राहुल के आरोप और नारे से उनकी ईमानदार छवि को गंभीर नुकसान हो रहा है? मुझे इस पर संदेह हैं। जैसा मैंने पहले के लेख में कहा था कि मोदी की व्यक्तिगत ईमानदारी एक अभेद्य संपत्ति है और वे यह जानते हैं। उनका परिवार न हाेने से इसे और बल मिला है।
उनकी खुद को संन्यासी बताने की छवि पर यह फिट भी बैठता है। यह भी महत्वपूर्ण है कि राहुल के रफाल पर आरोपों पर उन्होंने कहा था कि “गालियां देकर आप मेरी पचास साल की तपस्या को धूल में नहीं मिला सकते।” मैं कल्पना भी नहीं कर सकता कि मोदी इस बात से डर सकते हैं कि राहुल उनकी ईमानदार छवि को रौंद सकते हैं।
मान भी लिया जाए कि मोदी रफाल पर आरोपों से परेशान हैं तो भी बोफोर्स मामले को उठाने से कोई लाभ नहीं हो सकता, क्योंकि आज बड़ी संख्या में जो लोग वोट कर रहे हैं वे तो तब पैदा भी नहीं हुए थे, जब इस मामले ने राजनीति को हिला दिया था। इसलिए इन दाेनों में कोई संबंध नहीं है।
मेरा मानना है कि राहुल के पिता को चुनाव में लाना मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत और नेहरू-गांधी परिवार को निशाना बनाने के अभियान का हिस्सा है। मोदी जानते हैं कि ये दोनों एक दूसरे में गुंथे हुए हैं। लगभग सभी लोग मानते हैं कि कांग्रेस एक आर्क की तरह है और नेहरू-गांधी परिवार नींव का वह पत्थर है जो आर्क को जोड़े रखता है। इन्हें बाहर करो तो आर्क गिर जाएगी। अगर दूसरे शब्दों में कहें तो यह परिवार वह गोंद है जो कांग्रेस को एक रखता है। इसीलिए नेहरू-गांधी वंश को तिरस्कार से नामदार कहने का कोई भी मौका मोदी चूकते नहीं हैं। शाह भी नियमित तौर पर राहुल को बाबा कहते हैं, जिससे उनका आशय वंश के बच्चे के तौर पर होता है। दोनों ही “एक पार्टी के वंशवादी राज” का बार जिक्र करते रहते हैं।
इसलिए अब मैं इसकी व्याख्या इस तरह करता हूं- मोदी ने राहुल द्वारा भ्रष्टाचार को एक चुनावी मुद्दा बनाते देखकर इसे लाेगों को भ्रष्टाचार के उन आरोपों को याद दिलाने के मौके के रूप में देखा जिन्होंने इस परिवार को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया था। इसके अलावा यह मुकाबले को सीधे राहुल और अपने बीच दिखाने उनकी नई रणनीति का हिस्सा है। वह चाहते हैं कि चुनाव प्रचार को उनके और राहुल के बीच सीधी लड़ाई के रूप में देखा जाए क्योंकि उन्हें इस बात में कोई संदेह नहीं है कि विजेता कौन होगा।
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